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वीर गये सो गये, अब बाकी अपने कुलमें जो कुछ बचे हैं उन्हींकी रक्षा कीजिए। और उनकी रक्षाके लिए रामसे प्रार्थना करना ही एक मात्र उपाय है।" __मंत्रियोंकी ये बातें रावणको अच्छी नहीं लगी । इस लिए उसने उनकी, अवज्ञा कर सामंत नामके दूतको यह कहकर रामके पास भेजा कि-तू साम, दाम और दंड नीतिका आश्रय लेकर किसी भी तरहसे उनको समझा।
दूत रामकी छावनीमें गया । द्वारपालने उसके आनेकी, रामको खबर दी । रामने उसको बुला भेजा । उसने सुग्रीवादि वीरोंके मध्यमें बैठे हुऐ रामको नमस्कार कर गंभीरता पूर्वक कहा:-" महाराज ! रावणने कहलाया है, कि मेरे बन्धुवर्गको छोड़ दो। सीता मुझको देनेके लिए सम्मत होओ, और मेरा आधा राज्य तुम ग्रहण करो । मैं तुमको तीन हजार कन्याएँ भेट दूंगा। यदि इतने पर भी तुम सब नहीं करोगे तो फिर तुम्हारा जीवन और तुम्हारी सेना, कुछ भी न बचेंगे।"
रामने उत्तर दियाः- "मुझे न राज्य संपतिकी इच्छा है, न अन्य स्त्रियोंकी चाह है और न नाना भाँतिके भोगों ही की लालसा है। यदि रावण अपने बन्धु बांधवोंको छुड़ाना चाहता है, तो उसे उचित है कि, वह सीताको, उसका पूजन कर, मेरे पास भेज देवे । अन्यथा कुंभकदिक मुक्त न होंगे।"