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________________ का स्नानजल मैंने लोगोंपर डाला । उससे लोग रोगमुक्त होगये। एक बार सत्यभूति नामा चारण मुनिको मैंने इसका कारण पूछा । उन्होंने उत्तर दिया:-" यह उसके पूर्व जन्मके तपका फल है। उसके स्नानजलसे घाव रुझजाते हैं; अस्त्र प्रहार और लगीहुई शक्ति-निकल जाते है; व व्याधि मिट जाती है । रामके अनुजबन्धु इस कन्याके पति होंगे।". ___ "मुनिके वचनोंसे, सम्यक् ज्ञानसे और अनुभवसे मुझे यह निश्चय होगया है कि-मुनिका कथन सर्वथा सत्य हैं ।: इतना कहकर, मेरे मामा द्रोणमेघने मुझे भी विशाल्यका स्नानजल दिया। सारे देशमें मैंने उसको छिडकवा दिया, जिससे देशमेंसे रोग जाता रहा । उसी जलको मैंने तुम्हारे उपर डाला था। जिससे तुह्मारे शरीरमेंसे शक्ति निकल गई और तुम अच्छे होगये।" इस तरह मुझे और भरतको भी जलप्रभावका निश्चय होगया है। अतः आप दिन निकलनेके पहिले विशल्याका स्नानजल आ जाय, ऐसा, तत्काल ही, प्रबंध कीजिए। प्रातःकाल होजानेसे फिर क्या कर सकेंगे क्योंकि शकटके नष्ट होजाने पर गणेश क्या कर सकता है ? विशल्याके स्नानजलसे लक्ष्मणका सचेत होना। सुनकर, रामने विशल्याके स्नानका जल लानेके लिए, सुग्रीव भामंडल, हनुमान, और अंगदको तत्काल ही भरतके.
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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