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जैन रामायण सातवाँ सर्ग।
पास जानेकी आज्ञा की । वे विमानमें बैठकर पवनवेगके साथ अयोध्या जा पहुँचे । महेलमें छतपर भरत सोरहे थे । उनको जगानेके लिए उन्होंने आकाशमें रहकर, गायन करना प्रारंभ किया।
'राजकार्येऽपि राजान उत्थाप्यते छुपायतः।' (राजकार्यके लिए हर तरहसे राजाओंको उठाना चाहिए। ) गायनके स्वरसे भरत जागगये। भामंडल आदिने उनको जाकर, नमस्कार किया। भरतने उनको, अकस्मात रातमें आनेका कारण पूछा । उन्होंने सही सही सब बातें बतादीं।
'नाप्तस्याप्ते प्ररोचना।' __ ( अपने आप्तके आगे कोई कार्य छिपाने योग्य नहीं होता है। ) भरतने थोड़ी देर सोचा। फिर वे, उनके साथ विमानमें बैठकर कौतुक मंगल नगरमें पहुंचे। __ भरतने द्रोणमेघके पाससे विशल्याको माँगा। द्रोणमेघने अन्य एक हजार कन्याओं सहित, लक्ष्मणके साथ व्याह करनेके लिए, विशल्याको, उन्हें सौंप दिया। सुग्रीवादि भरतको वापिस अयोध्यामें छोड़कर, तत्काल ही विशल्या सहित लंका पहुंचे। __ ये लोग प्रज्वलित दीपकवाले विमानमें बैठकर गये थे इस लिए उसके प्रकाशसे वानरसेनामें क्षणवारके लिए,