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था, मूच्छित होता था; फिर सचेत हो, विलाप करता था, और फिर मूच्छित हो जाता था।
प्रतिचंद्र विद्याधरका रामके पास आना । रामकी सेनाके गिर्द बने हुए दुर्ग-कोट के दक्षिण द्वारके रक्षक भामंडल के पास एक विद्याधर आया और कहने लगा:- " यदि तुम रामके हितु हो, तो मुझे तत्काल ही उनके पास ले चलो । मैं लक्ष्मणके जीने का उपाय - बताऊँगा; क्योंकि मैं तुम्हारा हितेच्छु हूँ । ”
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सुनकर, भामंडल उसको हाथ पकड़ कर, रामके पास ले गया । उसने प्रणाम करके रामसे कहा:- हे स्वामी ! मैं संगीत पुरके राजा शशिमंडलका पुत्र हूँ । मेरा नाम प्रति - चंद्र है । सुप्रभा नामा रानीकी कूख से मेरा जन्म हुआ है। एक बार मैं विमानमें बैठ कर अपनी पत्नी सहित आकाश मार्ग क्रीडा करनेको जा रहा था । सहस्रविजय नामा विद्याधर ने मुझको देखा | मैथुनसंबंधी वैरके कारण उसने बहुत देर तक युद्ध किया । अन्तमें चंडरवा शक्तिका प्रहार कर उसने मुझको पृथ्वीपर गिरा दिया । मैं अयोध्याके महेंद्रोदय नामा उद्यानमें गिरा । मुझको वहाँ लोटते हुए आपके बन्धु कृपालु भरतने देखा । उन्होंने कोई सुगंधित - पानी मेरे आघात पर लगाया । उससे चंडरवा शक्ति बहार निकल गई, जैसे दूसरेके घरमेंसे चोर निकल जाता है । उसी समय शक्तिका घाव भी रुझ गया। मैंने आश्चर्य के साथ