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सात दुर्ग बना दिये । पूर्व दिशाके द्वारों पर, अनुक्रमसे सुग्रीव, हनुमान, तरकुंद, दधिमुख, गवाक्ष और गवय रहे । उत्तर दिशाके द्वारपर अंगद, कूर्म, अंग, महेंद्र, विहंगम, सुषेण और चंद्ररश्मि अनुक्रमसे रहे । पश्चिम दिशाके द्वारपर, नौल, समरशील, दुद्धर, मन्मथ, जय, विजय
और संभव रहे । और दक्षिण दिशाके द्वार पर, भामंडल, विराध, गज, भुवनजित, नल, मैंद और विभीषण रहे। इस प्रकार राम और लक्ष्मणको घेरकर सुग्रीव आदि योगीकी भाँति जाग्रत रहे ।।
लक्ष्मणके लिए सीताका विलाप। उस समय किसीने जाकर सीतासे कहाः-“रावणके शक्ति प्रहारसे लक्ष्मण मरा है और भाईके स्नेहसे दुःखी होकर राम भी कल सवेरे ही मर जायँगे ।" वज्र नि?षके समान यह भयंकर खबर सुनकर, सीता मूञ्छित हो पृथ्वीपर गिर पड़ी, जैसे कि पवनताडित लता मिर जाती है । विद्यापरियोंने मुँहपर जल छिड़का इससे वे वापिस सजग हुईं।
तत्पश्चात वे करुण आक्रंदन करने लगीं-" हा वत्स लक्ष्मण ! तुम अपने ज्येष्ठ बन्धुको अकेला छोड़ कर, कहाँ चले गये ? तुम्हारे बिना एक मुहूर्त भर रहना भी उनके लिए कठिन है । मुझ मंद भागिनीको धिक्कार है ! हाय ! मेरे ही लिए देवतुल्य राम और लक्ष्मण इस स्थितिको