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जैन रामायण सातवाँ सर्ग।
हैं; इस लिए इस समय तो इन्हें सचेत करनेका प्रयत्न कीजिए । रावणको तो अब मरा ही समझिए।" ___ राम फिर विलाप करने लगे-" अहो ! स्त्रीका हरण हुआ। अनुज लक्ष्मण मर गया; परन्तु यह राम अबतक जीवित ही बैठा है। यह क्यों नहीं सैकड़ों स्थानोंसे विदीर्ण हो जाता है ? हे मित्र सुग्रीव ! हे हनुमान ! हे भामंडल ! हे नल ! हे अंगद ! हे विराध ! और हे अन्यान्य वोरो! अब तुम अपने अपने स्थानको चले जाओ । हे मित्र विभीषण ! मैंने तुमको कृतार्थ नहीं किया इसका मुझको. सीताहरण और लक्ष्मणके मरणसे भी विशेष शोक है। इस लिए हे बन्धु ! कल सवेरे ही तुम अपने बन्धुरूपी शत्रु रावणको मेरे बन्धु लक्ष्मणका अनुगामी होता हुआ देखोगे । तुमको कृतार्थ करनेके बाद मैं भी अपने अनुजके पीछे जाऊँगा। क्योंकि विना लक्ष्मणके सीता और जीवन मेरे लिए किस प्रयोजनके हैं ?" . विभीषणने कहा:-" हे प्रभो ! आप ऐसे अधीर क्यों हो रहे हैं ? इस शक्तिसे मूच्छित बना हुआ . एक. रातभर जीता रहता है, इस लिए जब तक रात पूरी होकर, दिन न निकल जाय तब तक यंत्र मंत्र द्वारा लक्ष्मणके घातके प्रतिकारका प्रयत्न कीजिए।" - रामने स्वीकार किया। तत्पश्चात सुग्रीव आदिने विद्या. बलसे राम लक्ष्मणके चारों तरफ, , चार चार द्वारवाले