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आदि राक्षस वीरोंको बाँध बाँध कर रामके सुभट अपनी छावनी में ले गये ।
लक्ष्मणका मूच्छित होना ।
इस हालतको देखकर रावण शोकके मारे व्याकुल हो उठा। उसने क्रोध करके जयलक्ष्मीके मूल समान त्रिशूलको विभीषणपर चलाया । उस त्रिशूलको लक्ष्मणने अपने बाणोंसे बीचहीमें कदली खंडकी भाँति नष्ट कर दिया । तब विजयार्थी रावणने धरणेन्द्रकी दी हुई अमोघ विजया नामा शक्तिको आकाशमें घुमाना प्रारंभ किया । धग, धग, और तड़, तड़ करती हुई वह शक्ति प्रलयकालके अंदर चमकनेवाली बिजली के समान दिखने लगी । उसे देखकर देवता आकाशमेंसे हटाये सैनिकोंने आँखें मीचलीं । कोई भी स्वस्थ होकर वहाँ खड़ा न रह सका ।
उसको देखकर रामने लक्ष्मणसे कहाः " अपना - शरणागत विभीषण यदि इस शक्तिसे मारा जायगा तो अच्छा न होगा | हम आश्रितका घात करनेवाले, कह लायेंगे और धिक्कारके पात्र होंगे । "
रामके वचन सुनकर मित्रवत्सल सौमित्री विभीषण के आगे जा खड़े हुए । गरुडपर चढ़े हुए लक्ष्मणको आगे आया हुआ देख, रावण बोला:- "रे लक्ष्मण ! यह शक्ति मैंने तुझको मारनेके लिए तैयार नहीं की हैं । इस लिए तू दूसरों की मौत बीचमें आकर स्वयं न मर
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