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जैन रामायण सातवाँ सर्ग ।
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वहाँ दौड़ आये । इनको आये देख, राम लक्ष्मण आ भी युद्धमें आगये । कुंभकर्ण और राम, लक्ष्मण और इन जीत, सिंहजघन और नील, घटोदर और दुर्मुख, दुम और स्वयंभू, शंभु और नळ, मय और अंगद, चंद्रन और स्कंद, विश्व और चंद्रोदरपुत्र, केतु और भामंडल जंबूमाली और श्रीदत्त, कुंभ और हनुमान; सुमाली औ सुग्रीव, धूम्राक्ष और कुंद, और सारण और चंद्ररशि आदि अन्यान्य राक्षस, अन्यान्य वानरोंके साथ युद्ध कर लगे; जैसे समुद्रमें मगर दूसरे मगरोंके साथ युद्ध करते है
भयंकर युद्ध हो रहा था । इन्द्रजीतने क्रोधके सा लक्ष्मणके ऊपर तामस अस्त्र चलाया । शत्रुको ताप कर चाले लक्ष्मणने, पवनास्त्र द्वारा उसको निष्फल कर दिय गला दिया; जैसे कि अनि मोमके पिंडको गला देती है लक्ष्मणने इन्द्रजीत पर नागपाश अस्त्र चलाया; वह उस ऐसे बँध गया जैसे हाथी जलके अंदर तंतुओं से बँध जार है। नागपाशास्त्र से बँधा हुआ, इन्द्रजीत भूमिपर गि मानो वह पृथ्वीको फाड़ देना चाहता है। लक्ष्मणकी आज्ञा विराधने उसको उठाकर रथमें डाला, और कैदीको तर वह उसे छावनी में ले गया । रामने भी नागपाशसे कुं कर्णको बाँध लिया । रामकी आज्ञासे भामंडल उसक उठाकर अपनी छावनी में चला गया । दूसरे मेघवाह