SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रावणके वचन सुनकर विभीषणने कहा:-" रे अज्ञ! राम क्रोध करके यमराजकी भाँति तुझ पर आक्रमण करने आ रहे थे। मैंने ही उनको बहाना करके रोका है; मैं स्वयमेव युद्धके नामसे तुझे समझानेको आया हूँ। अतः अब भी मेरी बातको मानले और सीताको छोड़ दे। रे दशानन ! मैं न तो रामके पास मौतके डरसे गया हूँ और न राज्यके लोभसे । मैं केवल अपवादके भयसे उनके पास गया हूँ। सो यदि तू सीताको छोड़कर अपवादको-कलंकको दूर करदे तो मैं तत्काल ही रामको छोड़ कर तेरा आश्रय ग्रहण करलूँ।" उसके ऐसे वचन सुन, रावण कोपकेसाथ बोला:"रे दुर्बुद्धी ! रे कातर ! क्या अब भी तू मुझको डराता है ? मैंने तो केवल भ्रातृ-हत्याके डरसे ही तुझको ऐसा कहा था, अन्य कोई हेतु नहीं था।" फिर रावणने धनुषकी टंकार की। "मैंने भी भ्रातृ-हत्याके भयसे ही ऐसा कहा था, और कोई हेतु नहीं था।" ऐसा कह, विभीषणने भी अपने धनुषकी टंकार की। तत्पश्चात नानाप्रकारसे शस्त्रास्त्र चलाते हुए दोनों बन्धु उद्धता पूर्वक युद्ध करने लगे। - रामका शत्रु योद्धाओंको बाँधना। उस समय कुंभकर्ण, इन्द्रजीत और दूसरे राक्षस भी, यमराजके किंकरोंकी भाँति स्वामी-भक्तिसे प्रेरित होकर,
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy