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रावण वध ।
३२९ ... . .. ... ..... .mmmmmmmmmmmmmmm नके सामने आया । दूसरे राक्षसोंने भी, हनुमानको, मारनेकी इच्छा कर, चारों तरफसे घेर लिया; जैसे कि कुत्चें सूअरको घेर लेते हैं। हनुमानके तीक्ष्ण तीर शीघ्रतासे निकल निकल कर शत्रुओंको आहत करने लगे । कोई भुजामें, कोई मुँहमें, कोई चरणमें, कोई हृदयमें और कोई पेटमें प्रविष्ट होगया । उस समय हनुमान राक्षस सेनामें ऐसा सुशोभित होने लगा जैसे वनमें दावानल, और समुद्रवें वडवानल होता है । थोड़ी ही वारमें पराक्रमियोंके चूडामणि हनुमानने सारी राक्षस सेनाको नष्ट कर दिया जैसे कि सूर्य अंधकारको नष्ट कर देता है।
- युद्धकर, कुंभकरणका मूच्छित होना। राक्षससेनाके इस भाँति नष्ट होने पर, कुंभकरण क्रुद्ध
स्वयमेव युद्ध करनेको दौड़ा: वह ऐसा सुशोभित ने लगा, मानो ईशानेन्द्र भूमि पर आया है । चरण
मुष्टि प्रहारसे, कोनी प्रहारसे, थप्पड़से, मुद्गरके
त्रिशूलसे और टक्करसे,-ऐसे अनेक प्रकारसेवानर सेनाको नष्ट करने लगा। कल्पान्त कालके समुद्र समान रावणके तपस्वी बन्धु भकर्णको रणमें आया हुआ देख कर, सुग्रीव, भामंडल, धिमुख, महेंद्र, कुमुद, अंगद और अन्यान्य वीर वानर निकी भाँति क्रोधसे प्रज्वलित होकर, रणभूमिमें दौड़ ये । उन श्रेष्ठ वानरोंने विचित्र प्रकारके शस्त्रोंकी वर्षा