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जैन रामायण सातवाँ सर्ग ।
बाणों द्वारा आच्छादित करदिया; जैसे कि बादल सूर्यको आच्छादित कर देते हैं ।
आकाशस्थ रण देखनेवाले सभ्य, निरपेक्ष देवताओंने वाणी की: - " अहो ! वज्रोदर वीर हनुमान से युद्ध करने में समर्थ हैं और हनुमान भी वज्रोदरके लिए उपयुक्त है । " मानका पर्वतरूप हनुमान इस देववाणीको न सह सका । उसने क्रोधकर, उत्पात मेघकी तरह विचित्र शस्त्र बरसाकर, सब राक्षस वीरोंके देखते हुए वज्रोदरको मार डाला।
वज्रोदरके वध से क्रुद्ध होकर, रावणका पुत्र जंबूमाली, सामने आया और महावत जैसे हाथीको ललकारता है वैसे ही उसने तिरस्कार से हनुमानको ललकारा । एक दूसरेको वध करनेकी इच्छा रखते हुए, वे परस्पर में बाण युद्ध करने लगे; मानो बाजीगर - सपेरा - और साँप खेल करने लग रहे हैं । एक दूसरेपर, अपनेपर आये हुए बाणोंसे दुगने, बाण छोड़ते थे । उस समयकी उनकी स्थिति लेनेवाले और देनेवाले कीसी होगई थी । फिर हनुमानने क्रोध करके, जंबूमालीको रथ, घोड़े, और सारा रहित बना दिया; फिर उसपर मुद्गरका कठोर प्रहार किया इससे जंबूमाली मूर्छित होकर पृथ्वीपर गिरगया ।
जंबूमालीको मूच्छित देखकर, महोदर नामा राक्षस क्रोधसे बाणवर्षा करता हुआ, युद्ध करनेके लिए हनुमा