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________________ रावण वध। ३२७ तो भी हनुमान, उसमें प्रविष्ट करगया। जैसे कि मंदराचल समुद्रमें प्रवेश कर जाता है । ___ उस समय, हनुमानको सेनामें प्रवेश करता देख, अपने तीर तर्कशको सँभालता हुआ, दुर्जय माली नामा राक्षस, मेघकी भाँति गर्जना करता हुआ उसपर चढ़ गया। दोनों युद्ध करने लगे । धनुषकी टंकार करते हुए दोनों वीर ऐसे मालूम हो रहे थे, मानो दो सिंह अपनी पूँछको फटकार रहे हैं । एक दूसरेपर प्रहार करता था; एक दूसरेके शस्त्रोंको काट देता था और गर्जना करता था। बहुत देर युद्ध करनेके बाद, हनुमानने मालीको शस्त्रविहीन कर दिया; जैसे कि ग्रीष्म ऋतुका मूर्य छोटेसे सरोवरको सुखा देता है-जल विहीन करदेता है। फिर हनुमानने मालीसे कहा:--"रे वृद्ध राक्षस ! यहाँसे चला जा ! तुझे मारनेसे क्या लाभ है ?" ___ हनुमानकी बात सुनकर, वज्रोदर राक्षस आगे आया और कहने लगा:-" रे पापी दुर्वचनी ! क्यों तेरी मौत आई है ? यहाँ आ। मेरेसे युद्ध कर । थोड़ी ही देरमें मैं तुझको यमधाम पहुँचा देता हूँ।” वज्रोदरके वचन सुनकर, हनुमानने केसरी सिंहकी भाँति गर्जना की; और बाणवर्षाकर उसको ढक दिया । उन बाणोंको विच्छिन्न कर वज्रोदरने हनुमानको निज
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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