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क्रोधके मारे उसकी आँखोंसे आग सदृश स्फुलिंग उड़ते हुए, दिखाई देते थे। मानो वह दिशाओंको भी भस्म कर देना चाहता है । विविध अस्त्रोंसे सज्जित रावण यमराजसे भी भयंकर दिखाई देने लगा । इन्द्रकी भाँति अपने प्रत्येक सेनापतिको देखता हुआ, और शत्रुओंको तृणके समान गिनता हुआ रावण युद्धभूमिमें आया। उसको देखते ही, रामके पराक्रमी सेनापति-जिनको देवता आकाशमेंसे देखने लग रहे थे-सेना सहित युद्ध करनेको आये ।
युद्धप्रारंभ हो गया । थोड़ी ही देरमें युद्धस्थल कहींसे, उछलते हुए रक्तसे नदीके समान, कहींसे पड़े हुए हाथि-- योंसे पर्वतके समान; कहिंसे, रथमेंसे टूटकर गिरी हुई मकरमुख ध्वजासे, मगरोंके निवासस्थानके समान कहींसे अर्धमग्न बड़े बड़े रथोंसे समुद्रमेंसे निकले हुए दाँतोंके समान और कहींसे, नाचते हुए कबंधोंसे-धड़ोंसेनृत्यस्थानके समान, दीखने लगा।
रावणकी हुँकारसे प्रेरित होकर राक्षसोंने पूर्ण बलके साथ वानरोंपर धावा किया, और वानरसेनाको पीछे हटा दिया । अपने सैन्यके पीछे हटनेसे सुग्रीवको क्रोध आया । वह धनुष चढ़ा, प्रबल सेना साथ ले, पृथ्वीको कंपित करता हुआ आगे बढ़ा । उसको जाते देख हनुमान उसको रोक स्वयं युद्ध के लिए आगे आया। अगणित सेनानियोंसे रक्षित, दुर्मद राक्षसोंका व्यूह अत्यंत दुर्भेद्यथा