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जैन रामायण सातवाँ सर्ग।
करते हुए आकर कुंभकर्णको घेर लिया; जैसे कि शिकारीसिंहको घेर लेते हैं।
कुंभकर्णने तत्काल ही, कालरात्रिके समान; मुनिक वचन समान, प्रस्वापन नामा अमोघ अस्त्र उनपर चलाया इससे सारी वानरसेना निद्राके वशमें होगईं; जैसेके दिनमें कुमुद हो जाता है । यह देखकर, सुग्रीवने उसी समय प्रबोधिनी नामा महाविद्याका स्मरण किया । उसके प्रभावसे सारी सेना वापिस जागृत होगई, और "कुंभकर्ण कहाँ है; मारो" आदि शब्दोच्चार करने लगी। उस समय उनका कोलाहल ऐसा मालूम हो रहा था, मानो प्रातःकाल होनेसे पक्षी उठकर कलरव करने लग रहे हैं ।
सुग्रीव अधिष्ठित वानरयोद्धा कानोंतक बाणोंको खींच खींच कर चलाने लगे और कुंभकर्णको सताने लगे । इधर सुग्रीवने गदाका प्रहार कर, कुंभकर्णके सारथिको, स्थको और घोड़ोंको मार डाला । कुंभकर्ण हाथमें गदा लिए भूमिपर खड़ा हुआ ऐसा जान पड़ता था, मानो शिखरवाला पहाड़ खड़ा हुआ है । कुंभकर्ण सुग्रीव पर झपटा । कुंभकर्णकी गतिके वेगसे जो वायु चला उससे कई वानर गिर गये; जैसे कि हाथीके स्पर्शसे वृक्ष गिर जाते हैं। स्थलमें नदी जैसे पत्थरोंकी बाधा न मान बेरोक दौड़ती हुई-बहती हुई-चली जाती है, वैसे ही, वानरोंकी बाधा न मान, कुंभकर्णने दौड़ते हुए जाकर, सुग्रीवके रथको