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________________ बड़ी देरतक युद्ध होता रहा । जयलक्ष्मीके साध्य होनेमें बहुत विलंब लगा; जैसे कि पैतृक संपत्तिका भाग मिलनेमें बहुत विलंब होता है। चिरकाल युद्ध करनेके बाद, बलवान वानर सेनाने, वनकी भाँति, राक्षस सेनाको भग्न कर दिया। राक्षस सेनाको परास्त होकर पीछे हटते देख, रावणकी जयके जामिन रूप, हस्त और प्रहस्त युद्ध करनेमें प्रवृत्त हुए । उनसे युद्ध करनेके लिए, नल और नील नामक वीर सामने आये। पहिले वक्र और अवक्र ग्रहोंकी भाँति, वे रथारूढ होकर, परस्परमें मिले । उन्होंने धनुषोंपर चिल्ले चढ़ाकर उनकी टंकार की; मानों उन्होंने एक दूसरेको युद्धके लिए ललकारा है। दोनों ओरसे बाणवर्षा होने लगी । परस्परकी बाणवर्षासे चारोंके रथ बिंध गये । क्षणवरमें, नल जयी दिखने लगता; दूसरे ही क्षण हस्त विजय मालूम होने लगता था। इस प्रकारके क्षण, क्षणमें परिवर्तन होनेवाले जय, पराजयसे निपुण पुरुष भी उनके बलका अंदाजा न लगा सके । अन्तमें बलवान नलको सभ्य होकर देखनेवाले वीरोंके आगे लाज आगई साथ ही उसका क्रोध विशेष रूपसे भभक उठा। उसने तत्काल ही, अव्याकुल भावसे, क्षुरण बाणद्वारा हस्तका शिर काट दिया । ठीक उसी समय नीलने भी प्रहस्तको मार डाला । देवताओंने हर्षित होकर, आकाशसे नल और नील पर पुष्पवृष्टि की।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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