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जैन रामायण छठा सर्ग !
हनुमानने क्रोध करके उद्यानके वृक्षोंको उखाड़, उनसे राक्षसोंको मारना प्रारंभ किया।
सर्वमत्रं बलीयसाम् ।" (बलवानके लिए हरएक चीज शस्त्र है । ) पवन तुल्य अस्खलित हनुमानने वृक्षोंकी भाँति ही उद्यानके रक्षक क्षुद्र राक्षसोंको मार डाला। कई राक्षस भाग कर रावणके पास गये । उन्होंने हनुमानका आना और उसका उद्यानको व उद्यानके रक्षकोंको नष्ट कर देना, सुनाया।
सुनकर रावणने, हनुमानको मारनेके लिए, शत्रुघातक अक्षकुमारको आज्ञा की । युद्ध करनेका उत्साह रखनेवाला अक्षकुमार उद्यानमें पहुँच, हनुमान को बुरा भला कहने लगा । हनुमानने उसको कहाः-" भोजनके पहिले फलकी भाँति तू युद्धके पहिले ही मुझको प्राप्त हुआ है।" __ " रे कपि! वृथा गाल क्यों बजाता है ? " ऐसा कह,. तिरस्कार करते हुए रावणके पुत्र अक्षकुमारने, नेत्रके वेगको रोकनेवाले, तीक्ष्ण बाणोंकी हनुमानपर वर्षा की। हनुमानने भी बाणोंकी वृष्टि कर अक्षकुमारको ढक दिया जैसे कि उद्वेल-पर्यादासे बाहिर निकला हुआ-समुद्रका जल द्वीपोंको ढक देता है । हनुमान बहुत देरतक उसके साथ शस्त्रयुद्ध करता रहा । फिर शीघ्र ही रण समाप्त करने की इच्छा होनेसे उसने पशुकी तरह अक्षकुमारको मार डाला।