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हनुमानका सीताकी खबर लाना।
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हनुमान बोले:-" हे माता ! अब मैं रामके पास जाऊँगा; परन्तु इन राक्षसोंको भी मैं थोड़ा बहुत अपना पराक्रम दिखाता जाऊँगा। यह रावण अपने आपको सर्वत्र-सर्वविजयी समझता है; वह दूसरोंके वलको नहीं मानता, इसलिए मैं बताना चाहता हूँ कि, राम तो क्या परन्तु उनके दूत भी कैसे पराक्रमी हैं।"
पराक्रमकी बातें सुन 'बहुत अच्छा' कह सीताने उसको अपना चूडामणि दिया। चूडामाण ले, नमस्कार कर चरण-न्याससे पृथ्वीको धुजाते हुए हनुमान वहाँसे चले ।
हनुमानका रावणके उद्यानको नष्ट करना। तत्पश्चात वनके हाथीकी तरह अपने भुजबलसे हनुमानने देवरमण उद्यानको नष्ट करना प्रारंभ किया । रक्त अशोक वृक्षोंमें निःशूक, बकुलवृक्षामें अनाकुल, आम्रवृक्षोंमें करुणाहीन, चंपकवृक्षोंमें निष्कंप, मंदारोंमें अतिरोपी, कदलीवक्षोंमें निर्दय और अन्यान्य रमणीयवृक्षोंमें क्रूर होकर, हनुमान उनको नष्ट करनेकी लीला करने लगे। ___ यह देखते ही उस उद्यानके चारों द्वारों के द्वारपाल राक्षस हाथों में मुद्गर लेकर हनुमानको मारने दौड़े; और इनुमान पर, पास पहुँचकर, प्रहार करने लगे । किनारे परके पर्वतपर समुद्रके बड़े बड़े थपेड़े निष्फल जाते हैं, इसी तरह उनके हथियार हनुमानके ऊपर निष्फल गये ।