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________________ हनुमानका सीताकी खबर लाना। ३०३ भ्रमर नादके बहाने-रुदन कर रहे हैं । रात्रि-जागरणके प्रयाससे रक्त नेत्री बनी हुई गणिकाएँ कामीजनोंके स्थानों से निकलने लगीं; जैसे कि खंडितां स्त्रीके मुखकमल मेंसे नि:श्वास श्रेणी निकलने लगती है । उदित सूर्यके तेजने जिसका कान्ति वैभव लूट लिया है, ऐसा चंद्रमा, -लता-तंतुओंके वस्त्र समान दिखाई देने लगा। जो अंधकार सारे ब्रह्मांडमें भी नहीं समाता था उसी अंधकारको सूर्यने उड़ा दिया; जैसे कि प्रचंड वायु मेघोंको उड़ा देता है। रात्रिकी भाँति निद्रा भी नष्ट हो गई । नगरवासी अपने अपने कार्य करनेमें लगे। विभीषणसे हनुमानका मिलना। प्रातःकाल होते ही पराक्रमी हनुमान लंका सुंदरीसे सुंदरमधुर-वचन द्वारा अनुमति ले, लंका नगरीमें गया। प्रथम बलधाम हनुमानने, शत्रु सुभटोंके लिए भयंकर विभीषणके घरमें प्रवेश किया । विभीषणने सत्कार करके हनुमानसे आनेका अभिप्राय पूछा । हनुमानने गंभीरता पूर्वक थोड़े ही शब्दोंमें कहा:-" रावण सीताको हरलाया है, तुम रावणके अनुज बन्धु हो । इसलिए शुभ परिणामोंका विचार कर, रामकी पत्नी सीताको उससे छुड़ाओ । यद्यपि रावण बलवान है, तथापि उसने रामकी पत्नीका हरण किया है, इस १-अपने पतिको दूसरी स्त्रीके साथ रमण करता देख, ईर्ष्यासेदुःखसे जो हृदयमें जलती है, उसको खंडिता कहते हैं।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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