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हनुमानका सीताकी खबर लाना।
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भी दिखाई नहीं देता था। खड़के समान श्याम अंधकार व्याप्त आकाशमें तारे ऐसे जानपड़ने लगे, मानो जूआ खेलनेके पट्ट पर कौड़ियाँ बिखरी हुई पड़ी हैं । कजलके समानश्याम और स्पष्ट नक्षत्रवाला आकाश, पुंडरीक कमल पूर्ण यमुना नदीके श्याम जलवाले हृदके समान मालूम होता था । जब अंधकारने चारों तरफ फिरकर एकाकार कर दिया तब प्रकाश-विहीन सारा विश्व पातालके समान दिखाई देने लगा । अंधकार बढ़ जानेपर कामीजनोंको प्राप्त करनेकी उत्सुकता रखनेवाली दूतियाँ निःशंक होकर स्वच्छंदता पूर्वक फिरने लगीं; जैसे कि सरोवरमें नदियाँ फिरा करती हैं । पैरोंमें, घुटने पर्यंत, जेवर पहिन, तमाल वृक्षके समान श्याम वस्त्र धारण कर कस्तूरीका लेप लगा अभिसारिकाएँ फिरने लगी। उसी समय उदय गिरिपर किरणरूपी अंकुरका महाकंदभूत चंद्र उदित हुआ। वह ऐसा मालूम होता था, मानो किसी भव्य प्रासादके ऊपर स्वर्ण कलश लगा हुआ है । और उस समय अन्धकार ऐसा जान पड़ने लगा मानो वह स्वाभाविक शत्रुत्राके कारण कलंकके बहाने चन्द्रसे द्वंद्व युद्ध कर रहा है। विशाल गगनमें ताराओंके साथ चंद्रमा इच्छा पूर्वक क्रीडा करने लगा; जैसे कि, विशाल गोकुलमें वृषभ विचरण करता है । चंद्र के अंदर लगा हुआ कलंक ऐसा मालूम होता था, मानो रजत-पात्रमें कस्तूरीका रस भरा हुआ