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हनुमानका सीताकी खबर लाना।
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मारेगा । इसलिए हमारी प्रतीतिके लिए तुम उस शिलाको उठाओ।" - लक्ष्मणने उत्तर दियाः-" मैं तैयार हूँ|"
फिर वे आकाश मार्गसे जहाँ कोटि शिला थी वहाँ लक्ष्मणको ले गये । लक्ष्मणने लताकी तरह तत्काल ही उस शिलाको अपनी भुजासे उठा लिया । यह देख, 'साधु, साधु' शब्दोंका उच्चारण कर, देवताओंने आकाशमेंसे फूल बरसाये । अन्य सवको भी प्रतीति हुई। फिर वे गये थे उसी भाँति आकाश मार्गसे लक्ष्मणको रामके पास किष्किंधामें वापिस ले आये ।
वृद्ध कपियोंने कहा:--" अवश्यमेव तुम्हारे द्वारा रावणका ध्वंस होगा; मगर नीतिवान पुरुषोंकी ऐसी नीति है कि, पहिले दूत भेजना चाहिए। यदि समाचार देनेवाले दूतके द्वारा ही, काम बनता हो, तो फिर स्वयं राजाओंको उसके लिए उद्योग करनेकी आवश्यकता नहीं है । दूत बनाकर किसी, पराक्रमी और बुद्धिमान पुरुषको वहाँ भेजना चाहिए, क्योंकि लंका पुरीमें प्रवेश करना और निकलना भी बहुत कठिन है। ऐसा सुना जाता है । दूतको जाकर विभीषणसे मिलना चाहिए और उसीसे सीताको, वापिस सौंप देनेके लिए कहना चाहिए, क्योंकि राक्षस कुलमें वह बहुत ही नीतिमान पुरुष है । विभीषण सीताको छोड़ देनेके लिए रावणसे कहेगा, और रावण