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जैन रामायण छठा सर्ग ।
सीताका वृत्तांत सुनकर, राम प्रसन्न हुए। और सुसंगतिपुर के पति रत्नजटीसे वे गले लगकर मिळे |
फिर राम बारबार उससे सीताके विषय में पूछते थे; और वह उनके मनको प्रसन्न करनेके लिए बारबार उत्तर देता था ।
रामने सुग्रीव आदि महा सुभटोंसे पूछा:-" यहाँसे उस राक्षसकी लंकापुरी कितनी दूर है ? "
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उन्होंने उत्तर दिया: – “ वह पुरी दूर हो या निकट, इससे क्या होता जाता है ? हम सब तो उस जगत-विजयी रावण के सामने तृणके समान हैं। "
राम बोले :- " वह जीता जायगा कि नहीं; इसकी तुझें कोई चिन्ता नहीं है । तुम तो दर्शनके, जामिनकी भाँति उसको हमें दिखा दो । फिर तुम लक्ष्मणके बाणसे निकले हुए शरोंको उसके गलेका रक्त पीते हुए देखकर समझ जाओगे कि वह कितना सामर्थ्यवान है । "
लक्ष्मण बोलेः–“ वह रावण बिचारा कौन चीज है ? कि- जिसने छल करके ऐसा कार्य किया है ? संग्रामरूपी नाटक में सभ्य होकर खड़े हुए, तुम्हारे देखते ही देखते मैं क्षत्रियाचार से उसका शिरच्छेद कर दूँगा । "
जामवान बोला :- " तुम्हारेमें सब सामर्थ्य है; यह ठीक है; परन्तु अनलवीर्य नामा ज्ञानी साधुने कहा है कि, जो पुरुष कोटिशिलाको उठावेगा, वही रावणको