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हनुमानका सीताकी खबर लाना।
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लंकामें जाकर सीताको खोजकरना; उससे मिलकर मेरा चिन्ह यह अंगूठी उसको देना और उसका चूडामणि चिन्ह स्वरूप यहाँ ले आना । उसको मेरा संदेशा कहना कि-हे देवी! रामचंद्र तुह्मारे वियोगसे अत्यंत पीडित हो, तुलारा ही ध्यान करते हैं। रामके वियोगसे कहीं जीवनको मत छोड़ देना-मर मत जाना । थोड़े ही दिनमें तुम देखोगी कि लक्ष्मणने रावणको मार डाला है। . हनुमानने कहा:-" हे प्रभो ! मैं आपकी आज्ञाका पालन कर वापिस आऊँ तब तक आप यहीं रहिए।" ऐसा कह, रामको नमस्कारकर, एक वेगवाले विमानमें सवार हो, हनुमान लंकाकी ओर चला। ..
हनुमानका अपने नानासे युद्ध । आकाश मार्गसे जाते हुए हनुमान महेन्द्र गिरिके शिखर "पर पहुँचे । वहाँ उन्होंने अपने नाना महेन्द्रका महेन्द्रपुर नगर देखा । उसे देख, हनुमानने सोचा-“ यह मेरे उन्हीं नानाका नगर है कि, जिन्होंने मेरी निरपराधिनी माताको निकाल दिया था।" ऐसे पहिलेकी बातोंका विचार करते हुए हनुमानको क्रोध हो आया । इस लिए उन्होंने रणके बाजे बजवा दिये । ब्रह्मांडको फोड़ दे इस तरहकी ध्वनि उन बाजोंसे निकलने लगी और दिशाओंको व्याप्त करने लगी।