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जैन रामायण छठा सर्ग ।
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जान पड़ता है कि, तू स्वीकृत बातको भी भूल गया है। अब सीताकी शोध करनेको उद्यत हो; नहीं तो साहस गतिवाले मार्गको जा । वह रस्ता अब तक संकुचित नहीं हुआ है।" __ लक्ष्मणके वचन सुन, सुग्रीव उनके चरणमें गिर गया
औरै बोला:--" हे स्वामी ! मेरे प्रमादको सहन करो-मुझे क्षमा करा-और मुझ पर प्रसन्न होओ। क्योंकि आप मेरे प्रभु हो।"
इस प्रकार लक्ष्मणकी आराधना कर, लक्ष्मणके पीछे पीछे सुग्रीव रामके पास आया; और भक्ति सहित उनको प्रणाम किया। फिर सुग्रीवने अपने सैनिकोंको आज्ञा दी:
"हे सैनिको ! तुम पराक्रमी हो और तुम सर्वत्र अस्खलित गति हो-सब जगह तुम जा सकते हो । इस लिए सब जगह जाकर सीताकी शोध करो।" __ इस प्रकारकी आज्ञा सुन सुग्रीवके सुभट, सब द्वीपोंमें, पर्वतोंमें, वनोंमें, समुद्रोंमें और गुफाओंमें सीताकी शोध करने लगे।
__ रावण सीताको ले गया इसके समाचार मिलना। _सीताहरणके समाचार सुन, भामंडल रामचंद्रके पास आया, और अत्यंत दुःखी होकर वहीं रहा । अपने स्वामीके दुःखसे दुःखी विराध बहुत बड़ी सेना लेकर वहाँ आया, और पुराने प्यादेकी तरह वह भी रामकी सेवा करता हुआ, वहीं रहा।