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________________ हनुमानका सीताकी खबर लाना। २८७ ' अनागतं हि पश्यंति, मंत्रिणो मंत्रचक्षुषा।' (मंत्री विचार रूपी नेत्रोंसे अनागत वस्तुको भी देखते हैं।) सीताकी खोजके लिए सुग्रीवादिका निकलना। इधर सीताके विरहसे पीडित राम, लक्ष्मण प्रदत्त आश्वासनसे, बड़ी कठिनताके साथ समय निकाल रहे थे। ___एकवार रामने लक्ष्मणको शिक्षा देकर सुग्रीवके पास भेजा । लक्ष्मण, तरकश, धनुष और खड्ड लेकर सुग्रीवके पास चले । चरण-न्याससे पृथ्वीको चूर्ण करते, पर्वतोंको कॅपाते और वेगके झपाटेसे लटकती हुई भुजाओं द्वारा मार्गके वृक्षोंको गिराते हुए, वे किष्किंधामें पहुँचे। भ्रकुटीके चढ़नेसे जिनका लिलाट भयंकर हो रहा है। आँखें जिनकी लाल हो रही हैं, ऐसे लक्ष्मणको देख भयभीत हो, द्वारपालोंने तत्काल ही उन्हें मार्ग दिया। वे सुग्रीवके महल में पहुँचे। लक्ष्मणका आगमन सुन कपिराज सुग्रीव तत्काल ही अन्तःपुरसे बाहिर निकला । और भयसे काँपता हुआ उनके सामने खड़ा हो गया। ___ लक्ष्मणने क्रोधसे कहा:-" हे वानर ! अब तू कृतार्थ हो गया है । तेरा काम बन जानेसे तू अन्तःपुरकी कामिनियोंसे परिवृत्त होकर निःशंक सुखमें निमग्न हो रहा है । स्वामी राम भद्र वृक्षके नीचे बैठ, बरसके बराबर दिन निकाल रहे हैं, इसकी तुझको कुछ भी खबर नहीं है ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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