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________________ २८६ जैन रामायण छठा सर्ग । उनके आने पर विभीषण ने उनसे कहा:"" हे कुलमंत्रियो ! कामादि अंतर शत्रु भूतकी भाँति विषम हैं; उनमें से एक भी प्रमादी मनुष्यको हैरान कर देता है । अपना स्वामी रावण अत्यन्त कामातुर हुआ है । अकेला काम ही दुर्जय है; और उसको यदि परस्त्रीकी सहायता मिल जाय फिर तो कहना ही क्या है ? उस कामदेवके कारण लंकापुरीका स्वामी अति बलवान होने पर भी शीघ्र ही अत्यंत दुःख सागरमें आ गिरेगा । " मंत्रियोंने कहा: - " हम तो केवल नामके मंत्री हैं। वास्तविक मंत्री तो आप हैं जो इतनी दीर्घदृष्टि रखते हैं । जब स्वामी कामदेव वश हो गये हैं, तब उनपर हमारे कहनेका कुछ असर नहीं होगा । जैसे कि मिध्यादृष्टि मनुष्य पर जैनधर्मका उपदेश कुछ असर नहीं करता है । सुग्रीव और हनुमान के समान बलवान . पुरुष भी रामसे मिल गये हैं । 'महात्मानां न्यायभाजां कः पक्षं नावलंबते ? ' ( न्यायी महात्मा पक्षको कौन ग्रहण नहीं करता है ? ) सीता के निमित्त से रामभद्रके हाथों अपने कुलका क्षय होना ज्ञानियोंने बताया है; तो भी पुरुषके आधीन जो कुछ हो; वह उपाय, समयके योग्य, करना कर्तव्य है । " 1 इस प्रकार मंत्रियोंके वचन सुन, विभीषणने लंकाके . किले पर यंत्रादि रखवा दिये । -
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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