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हनुमानका सीताकी खबर लाना। २८९
~~~~~ सुग्रीव स्वयमेव भी सीताकी शोध करनेको निकला। वह अनुक्रमसे कम्बूद्वीपमें पहुँचा । उसको दूरसे आते देख रत्नजटी विचारने लगा.---" क्या रावणने मेरा अपराध याद करके, मुझको मारने के लिए इस महाबाहु वानरपति सुग्रीवको भेजा है ? पराक्रमी रावणने पहिले मेरी सारी विद्याएँ हरली हैं; अब यह वानरपति मेरे प्राण हर लेगा।"
रत्नजटी इस तरह विचार करने लग रहा था, उसी समय सुग्रीव उसके पास पहुँचा और कहने लगाः-"हे रत्नजटी ! मुझे देखकर तू खड़ा क्यो नहीं हुआ ? क्या तुझे आकाशमें गमन करते आलस्य आता है ? "
'रत्नजटी बोला:-" रावण जानकीका हरण कर ले जा रहाथा, में उसके साथ युद्ध करने गया। वहाँ उसने मेरी सारी विद्याएँ हरलीं।"
सुनकर, तत्काल ही सुग्रीव उसको उठा कर रामके चरणोंमें लाया। रामने उससे सारी बातें पूछीं। उसने सीताका वृत्तांत कहना शुरू किया:__“हे देव ! क्रूर और दुरात्मा रावण सीताको हरकर ले गया है । हा राम! हा वत्स लक्ष्मण ! हा भ्रात भामडळ ! इस तरह पुकारकर रोती हुई सीताके शब्द सुनकर, मुझे रावणपर क्रोध आया । मैं उससे लड़ने गया । उसने कोप करके मेरी सारी विद्याएँ हरलीं।"
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