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________________ हनुमानका सीताकी खबर लाना। २८३ -rammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm उसको मध्यस्थ समझ, नीचा मुखकर सीवाने कहा:“ मैं जनक राजाकी पुत्री और भामंडल विद्याधरकी बहिन हूँ । रामचंद्र मेरे पति हैं। राजा दशरथकी मैं पुत्रवधू हूँ। मेरा नाम सीता है। अनुज बंधु सहित मेरे पति दण्डकारण्यमें आये थे। मैं भी उनके साथ आई थी। वहाँ मेरे देवर क्रीडा करनेके लिए इधर उधर फिर रहे ये; इतनेहीमें आकाशस्थ एक महान खड़को उन्होंने देखा । कौतुकसे उन्होंने उसको हाथमें लेलिया। उससे उन्होंने पासहीमें एक वंशजाल थी उसको छेदा; इससे उसके अंदर रहे हुए उस खड़के साधकका मस्तक अजानमें कट गया। युद्ध करनेकी इच्छा न रखनेवाले निरपराधी मनुष्यका वधकर मैंने बहुत बुरा कार्य किया है । ऐसे पश्चात्ताप करते हुए वे अपने ज्येष्ठ बन्धुके पास आये। । थोड़ी ही देरमें मेरे देवरके पदचिन्होंके सहारे उस खड़साधककी उत्तर साधिका कोई स्त्री कोप-युक्त चित्त हो हमारे पास आई। अद्भुत रूपवाले इन्द्र तुल्य मेरे पतिको देख कर उस काम-पीडित स्त्रीने उनसे क्रीडा करनेकी प्रार्थना की । मगर मेरे पतिने, उसको जानकर, उसकी प्रार्थना अस्वीकार की। इससे वह वहाँसे चली गई और बड़ी भारी उग्र राक्षस सेना लेकर वापिस आई।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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