SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ जैन रामायण छठा सर्ग । तत्पश्चात 'यदि संकट पड़े तो सिंहनाद करना' ऐसा संकेत कर लक्ष्मण युद्ध करनेको गये । फिर मायासे झूठा सिंहनाद कर, मेरे पतिको मुझसे दूर हटा, दुष्ट इच्छावाला यह रावण मुझको अपनी मृत्युके लिए यहाँ ले आया है।" रावणकी उन्मत्ततासे विभीषणका कुल-प्रधानोंको बुलाना। इस प्रकार सीताका वृत्तान्त सुन, विभीषणने जाकर रावणको नमस्कार किया और कहा:-" हे स्वामी, आपने अपने कुलको कलंकित करनेवाला यह कार्य किया है। मगर राम लक्ष्मण हमको मारनेके लिए यहाँ आवे इसके पहिले ही आप सीताको शीघ्रतासे उनके पास छोड़ आइए।" विभीषणकी बातें सुन क्रोधसे लाल आँखें कर रावण बोला:-" रे भीरु ! तू ऐसे क्या बोल रहा है ? क्या तू - मेरे पराक्रमको भूल गया है ? अनुनय करनेसे यह सीता अवश्य मेरी स्त्री होगी; और पीछे राम लक्ष्मण यदि यहाँ आयँगे तो मैं उनको मार डालूँगा । विभीषणने कहा:"हे भ्राता ! ज्ञानीने कहा था कि, सीताके कारण अपना कुल नष्ट होगा । सो ज्ञानीका वचन सत्य होता दिखता है । यदि ऐसा नहीं होता तो आप इस भक्त बन्धुके वचन क्यों न मानते ? और मेरे द्वारा वध किया हुआ दशरथ फिरसे कैसे जीवित हो उठता ?
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy