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जैन रामायण छठा सर्ग ।
उसी समय विपत्तिनिमना सीताको देख न सका हो ऐसे भाव प्रकट करता हुआ सूर्य, पश्चिम समुद्रमें जाकर विलीन होगया-अस्त होगया । घोर रात्रिने प्रवेश किया । घोर बुद्धिवाला रावण क्रोधसे और कामसे अंधा होकर सीताको कष्ट पहुँचाने लगा।
सीताके पास विभीषणका आना। उल्लू घुत्कार करने लगे; फेस फाड़े मारने लगे सिंह. गर्जना करने लगे; बिल्लियाँ परस्पर लड़ने लगीं; व्याघ्र पूछे फटकारने लगे; सर्प फूत्कार करने लगे। पिशाच, प्रेत,. वेताल, और भूत, नंगी बरछियाँ लेकर फिरने लगे। __ये रावणकी मायासे बने हुए, यमराजके सभासद तुल्य भयंकर प्राणी उछलते और खराब चेष्टाएँ करते हुए सीताके पास गये। __ सीता मनमें पंचपरमेष्ठीका ध्यान करती हुई, चुपचाप बैठी रही । मगर भयभीत होकर उन्होंने रावणकी इच्छा नहीं की।
रातका यह सारा वृत्तान्त विभीषणने सुना, इस लिए रावणके पास जाते हुए पहिले वह सीताके पास गया और उसने उनसे पूछा:-“हे भद्रे ! तुम कौन हो ? किसकी स्त्री हो ? कहाँसे आई हो ? और यहाँ तुमको कौन लाया है ? सब बातें निर्भीक होकर मुझसे कहो । मैं परस्त्रीका सहोदर हूँ।"