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हनुमानका सीताकी खबर लाना।
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__उसको मध्यस्थ समझ, नीचा मुखकर सीताने कहा:"मैं जनक राजाकी पुत्री और भामंडल विद्याधरकी बहिन हूँ । रामचंद्र मेरे पति हैं। राजा दशरथकी मैं पुत्रवधू हूँ। मेरा नाम सीता है। अनुज बंधु सहित मेरे पति दण्डकारण्यमें आये थे। मैं भी उनके साथ आई थी। ___ वहाँ मेरे देवर क्रीडा करनेके लिए इधर उधर फिर रहे थे; इतनेहीमें आकाशस्थ एक महान खडुको उन्होंने देखा । कौतुकसे उन्होंने उसको हाथमें लेलिया। उससे उन्होंने पासहीमें एक वंशजाल थी उसको छेदा; इससे उसके अंदर रहे हुए उस खड़के साधकका मस्तक अजानमें कट गया।
युद्ध करनेकी इच्छा न रखनेवाले निरपराधी मनुष्यका वधकर मैंने बहुत बुरा कार्य किया है । ऐसे पश्चात्ताप करते हुए वे अपने ज्येष्ठ बन्धुके पास आये।
थोड़ी ही देरमें मेरे देवरके पदचिन्होंके सहारे उस खड़साधककी उत्तर साधिका कोई स्त्री कोप-युक्त चित्त हो हमारे पास आई। अद्भुत रूपवाले इन्द्र तुल्य मेरे पतिको देख कर उस काम-पीडित स्त्रीने उनसे क्रीडा करनेकी प्रार्थना की । मगर मेरे पतिने, उसको जानकर, उसकी प्रार्थना अस्वीकार की। इससे वह वहाँसे चली गई और बड़ी भारी उग्र राक्षस सेना लेकर वापिस आई।