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लगी ? रावणकी बहिन चंद्रनखा भी दोनों हाथोंसे छाती कूटती हुई, सुंदको साथ लेकर रावणके घरमें गई।
रावणको देख उसके गलेसे चिमट गई और उच्च स्वरसे रोती हुई चंद्रनखा कहने लगी:-" अरे! दैवने मुझको मार डाला । मेरा पुत्र, मेरा पति, मेरे दो देवर और चौदह, हजार कुलपति मारे गये । हे बन्धु ! तेरे जीवित होते हुए भी अभिमानी शत्रुओंने, तेरी दी हुई पाताल लंकाकी राजधानी हमसे छीन ली। इससे अपने सुंद पुत्रको ले, प्राण बचा, भाग, तेरे शरणमें आई हूँ। अतः बता अब मैं कहाँ जाकर रहूँ ?" __ रुदन करती हुई अपनी बहिनको रावणने समझाकर कहा:-" तेरे पति और पुत्रको मारनेवालेको मैं थोड़े ही समयमें मार डालूँगा।"
एकवार रावण इस शोकसे और सीताकी विरहवेदनासे फाल-च्युत व्याघ्रकी भाँति निराश होकर लोट रहा था, उस समय मंदोदरीने आकर कहाः-" हे स्वामी ! साधारण मनुष्यकी भाँति इस तरह निश्चेष्ट होकर आप कैसे सो रहे हैं। ?"
रावणने उत्तर दिया:--" सीताके विरहतापसे मैं इतना विकल हो रहा हूँ कि-मुझमें किसी प्रकारकी चेष्टा करनेका, कहनेका या देखनेका सामर्थ्य नहीं रह गया है। इस लिए हे मानिनी ! यदि तू मुझको जीवित रखना