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हनुमानका सीताकी खबर लाना ।
(क्योंकि-अपनेसे या दूसरेसे शत्रु वो मारने योग्य ही है। ) इस शत्रुका नाश करनेके लिए तीन लोकमें वीर शिरोमणि, मरुतके यज्ञको विध्वंस करनेवाले रावणकी जाकर मैं शरण लूँ। मगर रावण तो प्रकृतिसे ही स्त्रीलंपट और जगतका कंटक है। इस लिए वह मुझे और उसे दोनोंको मार डालेगा और स्वयं ताराको ग्रहणकर लेगा।
ऐसी आपत्तिमें सहाय करनेवाला, उग्र प्रतापी एक खर राक्षस था; मगर उसको रामने मारडाला। इस लिए अब यही उचित है कि, मैं पाताल लंकामें जाकर रामलक्ष्मणको मित्र करूँ। क्योंकि शरणागत विराधको उन्होंने तत्काल ही पाताल लंकाका राज्य दे दिया हैं; और अभी वे, पराक्रमी विराधके आग्रहसे वहीं ठहरे हुए हैं।"
ऐसा विचार कर, सुग्रीवने अपने एक विश्वास पात्र दूतको, एकान्तमें समझाकर, विराधके पास भेजा । दूतने पाताल लंकामें जा, विरोधको प्रणाम कर, अपने स्वामीके सारे कष्टको उसके आगे सुनाया, और कहा:-" मेरे स्वामी सुग्रीव इस समय बड़ी भारी विपत्तिमें फँस गये हैं। इस लिए तुम्हारे द्वारा वे रामलक्ष्मणके शरणमें जाना चाहते हैं।" ___ सुनकर विराधने दूतसे कहा:--" तू सुग्रीवको जाकर कह कि वे तत्काल ही यहाँ आवें । क्यों कि
‘सतां संगो हि पुण्यतः।'