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हनुमानका सीताकी खबर लाना।
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क्रोधसे रक्तनेत्र किये हुए, यमराजके सहोदरकी भाँति, जगतको त्रसित करते हुए वे युद्ध करने लगे। दोनों वीर रणचतुर थे; इस लिए एक दूसरेके शस्त्रोंको अपने शत्रोंसे त्रणकी भाँति छिन्न करने लगा।
दो भैंसोंके युद्ध जैसे वृक्षके टुकड़े उड़ते हैं, वैसे उन दोनोंके युद्ध में शस्त्रोंके टुकड़े आकाशमें उड़ने लगे। उनको देख कर आकाशस्थ खेचरियाँ भयभीत होने लगीं।
क्रोधी जन शिरोमणि उन दोनोंके शस्त्र जब छिन्नभिन्न होगये तब वे, मल्लयुद्ध करने लगे। वे ऐसे मालूम होते थे मानो दो पर्वत युद्ध कर रहे हैं । क्षणमें आकाशमें उड़ते
और क्षणमें पृथ्वीपर गिरते हुए वे वीर चूडामणी दो मुर्गोंके समान जान पड़ने लगे।
दोनों समान बलवाले थे, इस लिए, कोई किसीको न जीत सका और अन्तमें वे थक कर दो बैलोंकी भाँति दूर जा खड़े हुए।
पश्चात सच्चे सुग्रीवने अपनी सहायताके लिए हनुमानको बुलाया और फिरसे उसने छद्मीवेषी सुग्रीवके साथ उग्र युद्ध करना प्रारंभ किया ।
हनुमान, दोनोंके भेदको-सच्चे झूठेको-न जान सकनेसे चुपचाप देखते ही रहे; इससे छद्मवेषी सुग्रीवने सच्चे सुग्रीवको अच्छी तरहसे पीट डाला ।