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________________ २७२ जैन रामायण छठा सर्ग। द्वारपालोंने रोककर कहा कि-" राजा सुग्रीवतो अंदर गये हैं।" ___ एक समान दो सुग्रीवोंको देखकर वालीके पुत्रके मनमें सन्देह पैदा हुआ। इस लिए वह, यह सोच अन्तःपुरमें गया कि अन्तःपुरमें किसी प्रकारका विप्लव न हो जाय । और वहाँ उसने छद्मवेषी सुग्रीवको अन्तःपुरमें घुसते ही रोक दिया, जैसे कि नदीके पूरको पर्वत रोक देता है। तत्पश्चात जगतका सारा सार एकत्रित किया गया हो, वैसी चौदह अक्षोहिणी सेना वहाँ जमा हुई। जब सेनाने सच्चे और झूठे सुग्रीवको नहीं पहिचाना तब वह दो भागोंमें विभक्त होकर, आधी आधी दोनों ओर हो गई। फिर दोनोंमें भयंकर युद्ध होने लगा। भालाओंके. आघातसे अग्निकी चिनगारियाँ उछल कर ऐसी जान पड़ने लगीं मानो आकाशमें उल्कापात हो रहा है। सवारसे सवार महावतसे महावत, रथीसे रथी और पैदलसे पैदल, आपसमें युद्ध करने लगे। प्रौढ पतिके समागमसे मुग्धा स्त्री जैसे काँपती है, वैसे ही चतुरंगिणी सेनाके विमर्दसे पृथ्वी काँपने लगी। सच्चे सुग्रीवने ऊँचा सिरकर छद्म वेषी सुग्रीवको युद्धके लिए ललकारा-"अरे! परघरमें प्रवेश करनेवाले चोर ! सामने आ ।" ललकार सुन तिरस्कृत हाथीकी भाँति छद्मवेषी सुग्रीव उग्र गर्जना करता हुआ उसके सामने गया।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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