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हनुमानकी सीताका खबर लाना।
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__ थोड़ी वारके बाद उन्होंने चैतन्य हो, बैठकर देखा; तो उन्हें वहाँ मरणोन्मुख पड़ा हुआ जटायु नजर आया। उसको देखकर राम सोचने लगे-"किसी मायावीने छल करके मेरी प्रियाका हरण किया है । यह महात्मा पक्षी क्रोधकर हरणकर्ताके सामने हुआ होगा; इस लिए उस हरणकर्ताने ही इसके पंखोंको छेद दिया है।"
फिर, उसपर प्रत्युपकार करनेके लिए, रामने अंत समयमें, श्रावक जटायुको परलोकके मार्गमें, भाता-शृंखड़ीके समान, नवकार मंत्र सुनाया।
तत्काल ही मरकर वह पक्षीराज माहेन्द्र कल्पमें देवता हुआ। राम सीताकी शोधमें इधर उधर वनमें फिरने लगे। . विराधका लक्ष्मणके पक्षमें आना।
उधर लक्ष्मण बड़ी भारी सेनावाले खरके साथ अकेले ही युद्धकर रहे थे।
'न सिंहस्य सखा युधि ।' (युद्धमें सिंहके कोई सहकारी-सखा-नहीं होता है।) फिर खरके अनुज 'त्रिशिराने ' अपने ज्येष्ठ बंधुसे कहा:-" ऐसे तुच्छ व्यक्तियोंके साथ आप क्या युद्ध करते है ?” उसको युद्ध करनेसे रोक, आप लक्ष्मणसे युद्ध करने लगा।
रामके अनुज लक्ष्मणने, रथमें बैठकर युद्ध करनेको उद्यत बने हुए त्रिशिराको, पतंगकी भाँति मार डाला ।