________________
जैन रामायण छठा सर्ग।
wwwww
तब पाताल लंकाके पति 'चंद्रोदरका' पुत्र 'विराध' अपनी सारी तैयार सेनाको लेकर वहाँ आया।
रामके शत्रुओंका नाश करने और उनका आराधक. बननेकी इच्छाकर उसने रामके अनुज लक्ष्मणको नमस्कार किया व कहा:- "मैं आपके शत्रुओंका द्वेषी और दुश्मन हूँ
और आपका सेवक हूँ। रावणके इन सेवकोंने मेरे पराक्रमी पिता चंद्रोदरको निकालकर, पाताल लंकाको अपने कब में कर लिया है । हे प्रभु ! यद्यपि अन्धकारका नाश करनेमें सूर्यका कोई सहायक नहीं होता है; तथापि शत्रु
ओंका संहार करनेमें, आपकी थोड़ी बहुत मदद करनेको यह सेवक तैयार है । अतः इसको युद्ध करनेकी आज्ञा दीजिए।
लक्ष्मणने हँसते हुए उत्तर दिया:-"मैं अभी ही इन शत्रुओंका संहार कर देता हूँ तुम खड़े हुए देखो।"
विजयो ह्यन्य-साहाय्याहोष्मतां ह्रियो ।' (दूसरोंकी सहायतासे (शत्रुओंको जीतना ) पराक्रमी वीरोंके लिए लज्जाकी बात है) "आजसे मेरे ज्येष्ठ बन्धु रामचंद्र तेरे स्वामी हैं, और मैं अभीहीसे तुझे पाताल लंकाके राज्यपर बिठाता हूँ।"
खर और दूषणका वध । अपने विरोधी विराधको लक्ष्मणके पास गया देख, खरको बहुत क्रोध आया। उसने धनुषपर चिल्ला चढ़ाकर कहा:-.