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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग ।
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लक्ष्मण यह बात स्वीकारकर, रामकी आज्ञा ले, धनुषबाण धारणकर वहाँसे युद्धमें चले; और गरुड जैसे सोको मारता है, वैसे ही वे उनको मारने लगे ।
जब युद्ध बढ़ने लगा तब चंद्रनखा, अपने स्वामीके पक्षको प्रबल करनेके लिए तत्काल ही रावणके पास गई । __उसने रावणके पास जाकर कहा:-" हे भाई ! राम लक्ष्मण नामा दो अजाने पुरुष दण्डकारण्यमें आये हैं। उन्होंने तेरे भानजेको मार डाला है । यह बात सुनकर तेरा बहनोई खर विद्याधर अपने अनुज बन्धु सहित सेना लेकर वहाँ गया है, और अभी लक्ष्मणके साथ युद्ध कर रहा है । राम अपने अनुजके और स्वतःके बलके गर्वसे गर्वित होकर, अलग बैठा हुआ है, और सीताके साथ विलास कर रहा है । सीता स्त्रियोंमें रूपलावण्यकी अन्तिम सीमा है । उसके समान न कोई देवी है; न कोई नागकन्या है और न कोई मानुषी ही है । वह कोई जुदा ही है । उसका रूप सुर, असुरोंकी स्त्रियोंको भी दासियाँ बनावे ऐसा है; उसका रूप तीन लोकमें अनुपम और अकथनीय है-वाणी उसका वर्णन नहीं कर सकती है।
हे बन्धु ! इस समुद्रसे लेकर दूसरे समुद्र पर्यंत पृथ्वीपर जितने भी रत्न हैं, वे सब रत्न तेरे योग्य हैं। इस लिए रूप संपत्चिद्वारा दृष्टिको अनिमेषी करनेवाले उस