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________________ सीताहरण। २५७ है, और नटकी भाँति वेष धारणकर, कूट नाटक दिखा, हमको ठगनेके लिए आई है । फिर हास्य-ज्योत्स्नाके पूरसे ओष्ठोंको विकसित करते हुए राम बोले:--"मैं तो स्त्री सहित हूँ, इसलिए तू स्त्री विहीन लक्ष्मणके पास जा।" चंद्रनखाने, रामके वचन सुन, लक्ष्मणके पास जाकर ब्याहकी प्रार्थना की । लक्ष्मणने उत्तर दिया:--" तू पहिले मेरे पूज्य बन्धुके पास गई, इस लिए तू भी मेरे लिए पूज्य होगई । अतः अब इस विषयमें तू मुझसे कुछ न कह।" खरके साथ युद्ध और सीता हरण । इस भाँति अपनी याचनाके खंडित होनेसे और पुत्रके वधसे उसको अत्यंत क्रोध आया। वह तत्काल ही पाताल लंकामें गई । उसने अपने स्वामी खरको और दूसरे विद्याघरोंको अपने पुत्रवधके समाचार सुनाये । सुनकर चौदह हजार विद्याधरोंके सैन्यको ले खर, दण्डकारण्यमें, रामको पीडित करनके लिए गया; जैसे कि पर्वतको पीडित करनेके लिए हाथी जाते हैं। ___ 'मेरी उपस्थितिमें क्या पूज्य रामचंद्रकी युद्ध करेंगे?" ऐसा सोच, लक्ष्मणने युद्ध के लिए रामसे आज्ञा माँगी। रामने कहा:--" हे वत्स ! तू भले विजय प्राप्त करनेके लिए जा; परन्तु यदि कोई संकट पड़े तो मुझे बुलानेके लिए सिंहनाद करना।" १७
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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