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सीताहरण ।
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नखाको विचार हुआ कि-'आज अवधि पूरी हुई है। मेरे पुत्रको सूर्यहास खड़ आज अवश्य सिद्ध होगा। इसलिए मुझको उसके लिए पूजाकी सामग्री और: अन्नपानलेकर जाना चाहिए।'
ऐसा विचार कर वह तत्काल ही वंशगव्हरके पास गई । वहाँ उसने अपने पुत्रके कटे हुए सिरको-जिस पर बाल बिखर रहे थे, जिसके कानोंमें कुंडल लटक रहे थेदेखा । इससे वह व्याकुल हो " हावत्स शंबूक! हावत्स शंबूक ! तू कहाँ ?" पुकार पुकार कर रोने लगी। ___ इतने ही में भूमिपर पड़े हुए लक्ष्मणके पैरोंके मनोहरचिन्ह उसकी दृष्टिमें आये । जिसने मेरे पुत्रको मारा है, उसीके ये चिन्ह है; ऐसा सोचकर वह उन पद-चिन्होंका अनुसरण करती हुई चली । थोड़ी दूर जाकर एक वृक्षके नीचे सीता और लक्ष्मणके साथ बैठे हुए, नेत्राभिराम रामचंद्रको उसने देखा । रामके सुंदर रूपको देखकर चंद्रनखा, तत्काल ही रतिवश हो गई। 'कामावेशः कामिनीनां शोकोद्रेकेऽपि कोऽप्यहो ।'
(अहो ! महा शोकमें भी कामिनियोंको कैसा कामका आवेश चढ़ जाता है।)
फिर नाग कन्याके समान सुंदर रूप बनाकर कामपीडित चंद्रनखा धूजती हुई रामके पास गई । उसको देख