________________
२५४ जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग ।
उसी समय इधर उधर फिरत और क्रीडा करते हुए लक्ष्मण भी वहाँ जा पहुँचे । वहाँ उन्होंने सूर्य-किरणोंके समूह समान सूर्यहास खङ्गको देखा । लक्ष्मणने उसको हाथमें लेकर म्यानमेंसे खींच लिया।
'अपूर्व शस्त्रालोके हि क्षत्रियाणां कुतूहलम्' ( अपूर्व शस्त्र देखनेसे क्षत्रियोंको कुतूहल होता है।) फिर उसकी परीक्षा करनेके लिए उन्होंने उससे पासवाले वंशजालको, कमल नालकी भाँति, कार्ट डाला । उस वंशजालमें रहे हुए शंबूकका शिर वंशजालके साथ ही कट गया और वह लक्ष्मणके आगे आगिरा। यह देखकर लक्ष्मणने-जालमें प्रवेश किया। अंदर उन्होंने लटकता हुआ घड़ भी देखा। इससे लक्ष्मण अपनी निन्दा करने लगे:" अरे ! मुझे धिक्कार है कि, मैंने ऐसा कृत्य किया है । मैंने युद्ध नहीं करनेवाले शस्त्र-विहीन निरपराधी पुरुषको मार डाला है।"
तत्पश्चात उन्होंने रामके पास जाकर, सारा वृत्तान्त सुनाया और उनको वह खड़ भी दिखाया। खड़ देखकर रामकोले:-" हे वीर ! यह सूर्यास खड़ है। इसके साथकको ही तुमने मारा है । इसका कोई उत्तर साधक भी -आसपासमें कहीं होना चाहिए।"
रामपर चंद्रनखाकी आसक्ति। उस समय उधर पाताल लंकामें रावणकी बहिन चंद्र