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सीताहरण।
२५३.
मुनिके वचनसुन ‘हाँ यह मेरा परमवन्धु है' ऐसा कह, रामने मुनिको वंदना की । मुनि वहाँसे उड़कर आकाशमार्गद्वारा दूसरे स्थानको गये । राम, लक्ष्मण और जानकी उस जटायु पक्षीके साथ दिव्य रथमें बैठ क्रीडा करनेके लिए अन्य स्थानमें विचरने लगे।
सूर्यहास खड्गसाधतेहुए शंबूककी अचानक हत्या। उसी कालमें पाताल लंकामें, खर और चंद्रनखाके 'शंबूक' और सुंदनामा दो पुत्र यौवन वयको प्राप्त हुए। . एकवार माता पिताके मना करने पर भी शंबूक सूर्यहास खगको साधनेके लिए दंडकारण्यमें गया । वहाँ वह क्रौंचरेवा नदीके तीरपर एक वंश गव्हरमें जाकर रहा । उस समय वह आप ही आप बोला-“यहाँ रहते हुए, यदि कोई मुझको रोकेगा तो मैं उसको मार डालँगा।"
तत्पश्चात वह एकाहारी, विशुद्धात्मा, ब्रह्मचारी और जितेन्द्रिय शंबूक वट वृक्षकी शाखासे अपने दोनों पैरोंको बाँध, अधोमुख हो, सूर्य हास खड्गको साधनेवाली विद्याका जप करने लगा। यह विद्या बारह वर्ष और सात दिनतक साधनेसे सिद्ध होती है।
इस प्रकार वागलकी भाँति ओंधे मुख रह साधना करते हुए उसको बारह वर्ष और चार दिन बीत गये । इससे सिद्ध होनेकी इच्छासे म्यानमें रहा हुआ, सूर्यहास खङ्ग,
आकाशमें तेज और सुगंध फैलाता हुआ, वंशगव्हरके पास आया।