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सीताहरण ।
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'लीन हुए । हमारे पिता हमारे वियोगसे दुखी हो; अनशनकर, मृत्यु पा 'महालोचन' नामा गरुडपति देवता हुए हैं। आसन-कंपसे हमपर होते हुए उपसर्गको जान, पूर्वस्नेहके कारण दुखी हो वे, इस समय यहाँ आये
__अन्यदा पूर्वोक्त अनलप्रम देव कौतुकसे कई देवता
ओंको साथ लेकर केवलज्ञानी अनंतवीर्य महा मुनिके पास गया था । देशना पूर्ण होनेपर किसी शिष्यने अनन्तवीर्य महा मुनिसे पूछा:--" हे स्वामी! आपके पीछे मुनिसुव्रत स्वामीके तीर्थमें केवलज्ञानी कौन होगा ?"
मुनिने उत्तर दिया:--" मेरे निर्वाण होनेके बाद, कुलभूषण और देशभूषण नामा दो भाई केवलज्ञानी होंगे। यह सुनकर अनलप्रभ अपने स्थानको गया । ___ कुछ दिन पहिले उसने अवधिज्ञान द्वारा हमको यहाँ कायोत्सर्ग ध्यान करते देखा । इससे मिथ्यात्वके कारण मुनिके वचनको अन्यथा करने, और हमारे पर पूर्वभवका उसका जो वैर था उसको चुकानेके लिए वह यहाँ आकर हमपर घोर उपसर्ग करने लगा। उसको उपद्रव करते हुए आज चार दिन होगये हैं। आज वह तुम्हारे भयसे भाग गया है; और कर्मक्षयसे हमको केवलज्ञान हुआ है। देव उपसर्गमें तत्पर था, तो भी हमको, तो केवलज्ञानप्राप्तिमें वह सहायक ही बना है।"