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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग।
लिया । अनुक्रमसे विमला देवीकी कूखसे, दो पुत्र हुए। वे ही दोनों हम हैं । मेरा नाम है 'कुलभूषण' और ये हैं 'देशभूषण'
राजाने हमको शिक्षा देनेके लिए 'घोष ' नामा उपाध्यायके सिपुर्द किया था। बारह वर्ष तक उनके पास रह कर हमने सब कलाओंका अभ्यास किया। तेरहवें वर्ष घोष उपाध्यायके साथ हम वापिस राजाके पास आये। ___ मार्गमें आते हुए, राजमंदिरके झरोखेमें, बैठी हुई एक कन्याको हमने देखा । उसको देखते ही हम उसके अनुरागी.. बन गये, इस लिए हमारे मनमें उसीकी चिन्ता होने लगी।
राजाके पास जाकर हमने सब कलाएँ दिखाई। राजाने उपाध्यायकी पूजा करके उनको विदा किया । हम राजाकी आज्ञासे हमारी माताके पास गये। वहाँ उसके पास उस कन्याको हमने फिरसे देखा । माताने कहा:--" हे वत्सो ! यह तुम्हारी कनकप्रभा नामा बहिन है । तुम घोष उपाध्यायके यहाँ थे, तब यह कन्या जन्मी थी इससे तुम इसको नहीं पहिचानते हो।"
यह सुनकर हम बहुत लज्जित हुए । और अज्ञानसे उसके अनुरागी हुए थे, इसका हमें पश्चात्ताप हुआ । हमें वैराग्य उत्पन्न होगया, और तत्काल ही हमने गुरुके पाससे दीक्षा ले ली।
तीव्र तपस्या करते हुए हम इस महा गिरिपर आये. और शरीरपर भी ममत्व न रख, कायोत्सर्गपूर्वक ध्यानमें