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सीताहरण।
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ईया करने लगा । मगर वे उससे मत्सर भाव नहीं रखते थे।
रत्नरथको राज्यपद और चित्ररथ व, अनुद्धरको युवराज पद देकर प्रियंवद राजाने दीक्षा ली। वह मात्र छ: दिन तक व्रतपाल कर मरा और देवता हुआ। ___ राज्य करते हुए रत्नरथको एक राजाने अपनी कन्या "श्रीप्रभा' नामा दी । उस कन्याको अनुद्धरने पहिले चाहा था; इस लिए वह कुपित हुआ और उसने युवराज पद त्याग कर रत्नरथकी भूमिको लूटना खसोटना प्रारंभ किया।
रत्नरथने उसको युद्धस्थलमें परास्तकर, पकड़ लिया। बहुत कुछ हैरान करनेके बाद उसने उसको वापिस छोड़ दिया । अनुदर छूट कर तापस बना । तापसपनमें उसने (स्त्रीसंग करके अपने तपको निष्फल कर दिया।
वहाँसे मरकर बहुत भवों तक भ्रमण कर, वह वापिस मनुष्य हुआ । मनुष्यभवमें तापस बनकर अज्ञान तप किया। वह उस भवमेंसे मर कर हमको उपसर्ग करनेवाला यह अनलप्रम नामा ज्योतिष्कदेव हुआ है।
चित्ररथ और रत्नरथने भी क्रमशः दीक्षा ली। और चे मरकर अच्युत कल्पमें, ' अतिवल ' और 'महाबल, नामा दो महर्दिक देव हुए । वहाँसे चवकर उन्होंने क्षेमकर' राजाकी रानी 'विमला देवी के गर्भसे जन्म