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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग।
वहाँ वसुभूतिके जीवने-जो म्लेच्छ हो गया था-उन मुनियोंको देखा । तत्काल ही पूर्व भवके वैरके कारण वह उनको मारने दौड़ा । म्लेच्छ राजाने उसको रोका; क्योंकि पूर्वभवमें वह म्लेच्छपति पक्षी था और वे उदित और मुदित नामा किसान थे। उस समय किसी शिकारीके पाससे उन्होंने उस पक्षीको छुड़ाया था; इस लिए म्लेच्छपतिने बहाँ उनकी रक्षा की थी। फिर उन मुनियोंने समेतशिखर पर जाकर चैत्य-वंदना की और चिरकालतक पृथ्वीपर विहार किया । अन्तमें अनशन व्रत ग्रहण कर, मृत्यु पा दोनों मुनि महाशुक्र देवलोकमें 'सुंदर.' और 'सुकेश' नामा महर्द्धिक देवता हुए। . वसुभूक्किा जीव अनेक भव भ्रमण कर, किसी पुण्यके योगसे मनुष्य जन्म पाया । उस भवमें वह तापस बना । वहाँसे मरकर वह ज्योतिष्क देवोंमें 'धूमकेतु 'नामा मिथ्या दृष्टि महान दुष्ट देवता बना।
उदित और मुदितके जीव महाशुक्र देवलोकमेंसे चव, भरतक्षेत्रके बहुत बड़े नगर 'रिष्टपुर' में 'प्रियंवदा' राजाके 'पद्मावती' रानीसे 'रत्नरथ' और चित्रस्थ नामक विख्यात पुत्र हुए। .. .. धूमकेतु भी ज्योतिष्क देवोंमेंसे चव उसी राजाकी, कनाभा नामा रानीसे अनुद्धर नामा पुत्र हुआ । का अपने सापत्न-सौतके-भाई रत्लस्थ और चित्ररथ पर