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________________ सीताहरण | २४१ आज्ञा से कहीं विदेश निकला । वसुभूति भी उसके साथमें गया और इसने उसको किसी तरकीबसे मार डाला । फिर वसुभूति वापिस नगरी में आया और लोगोंसे कहने लगा, कि अमृतस्वरने किसी कार्यके लिए उसको वापिस लौटा दिया हैं | तत्पश्चात वह उपयोग के पास गया और बोला:" मैंने अपने भोगमें विघ्न करनेवाले अमृतस्वरको छल करके मार डाला है | " -- उपयोगाने कहा:- -" यह तुमने बहुत ही श्रेष्ठ कार्य किया है। अब इन पुत्रोंको भी मार डालो तो अपने निर्मक्षिकता - विभकारक रहितता हो जायगी । " वसुभूतिने यह स्वीकार किया । दैवयोगसे उनका विचार वसुभूतिकी स्त्रीको मालूम हो गया । उसने ईर्ष्यावश यह बात अमृतस्वर के पुत्र उदित और मुदितसे कहदी | तत्काल ही उदितने क्रोध करके वसुभूतिको मार डाला। वह मरकर ' नलपल्ली' में म्लेच्छ हुआ । एकवार ' मतिवर्द्धन ' नामा मुनिके पाससे धर्म सुनकर, विजयपर्व राजाने दीक्षा ली । उसके साथ ही उदित और मुदितने भी दीक्षा लेली । किसी समय उदित और मुदित मुनि समेतशिखर पर चैत्योंकी वंदना करनेको जा रहे थे । चलते हुए रस्ताभूल गये और उस नलपल्लो में जा पहुँचे । १६
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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