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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग।
सूर्य अस्त होगया। रात्रि क्रमशः बढ़ने लगी। उसी समय अनेक वैताल बनाकर 'अनलप्रभ' नामा एक देव वहाँ आया। और स्वयं भी वैतालका रूपधर, अट्टहास करता हुआ, आकाशको फोड़दे ऐसे शब्द करने लगा और उन दोनों महर्षियोंको कष्ट पहुँचाने लगा।
तत्काल ही राम और लक्ष्मण, सीताको मुनिके पास पीछे रख, कालरूप हो, उस वेतालको मारनेके लिए उद्यत हुए।
उनके तेजको न सह सकनेसे वह देव तत्काल ही वहाँसे निज स्थानको चला गया। इधर दोनों मुनियोंको केवलज्ञान उत्पन्न होगया। देवताओंने आकर मुनियोंका केवलज्ञान महोत्सव किया। - कुलभूषण और देशभूषण मुनियोंका पूर्वभव । - पश्चात रामने, दोनों मुनियोंको वंदनाकर उनपर उपसर्ग होनेका कारण पूछा । कूल भूषण नामा मुनि बोले:-“पमिनी' नामा नगरीमें 'विजयपर्व' राजा राज्य करता था । उसके .' अमृतस्वर' नामा एक दूत था। उसके उपयोगा' नामकी स्त्रीसे 'उदित' और 'मुदित ' नामके दो पुत्र हुए थे। ".. अमृतस्वर दूतके ' वसुभूति' नामका एक ब्राह्मण मित्र था। उसपर उपयोगा आसक्त होकर अपने पतिको मारनेकी इच्छा करने लगी। एकवार अमृतस्वर राजाकी