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________________ सीताहरण। गया। क्या मैं दूसरेका सेवक बनूँ ?' ऐसा अहंकार कर हुआ उसने, दीक्षा लेना निश्चित किया; और तत्काल ही अपने पुत्र 'विजयरथ को राज्य दे दिया। ___ उस समय रामने कहा:-" तुम मेरे दूसरे भरत हो; प्रसन्नतासे राज्य करो दीक्षा न लो।" तोभी उस महामानी अतिवीर्यने दीक्षा लेली। उसके पुत्र विजयरथने अपनी बहिन 'रतिमाला' लक्ष्मणको दी। लक्ष्मणने उसे ग्रहण की। राम वहाँसे सेना लेकर वापिस विजयपुर गये और विजयस्थ भरतकी सेवा करनेको अयोध्या गया । गौरवताके गिरि तुल्य भरतने सब हाल जान आगतः विजयरथका सत्कार किया। 'संतो हि नतवत्सलाः।' (सत्पुरुष भक्तवत्सल होते हैं । ) फिर विजयरथने अपनी छोटी बहिन 'विजयमाला' नामा-जो रतिमालासे छोटी थी भरतको दी। ___ उस समय अतिवीर्य मुनि विहार करते हुए वहाँ गये।' भरत राजाने अनेक राजाओं सहित उनके सामने जा, वंदना कर उनसे क्षमा माँगी। जितपद्माका लक्ष्मणको वरना। महीधर राजाकी आज्ञा लेकर रामचंद्र विजयपुरसे चल--
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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