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________________ सीताहरण। २३१ अनुराम है। इस लिए मैंने इसके लिए लक्ष्मणहीको वर ठीक कर रक्खा था। मेरे भाग्यके योगसे आज इनका समागम हो गया है। लक्ष्मणके समान जामाता और आपके समान संबंधी मिलना बहुत ही दुर्लभ है।" .: इतना कह, बड़े सन्मानके साथ, महीधर राजा, जानकी, लक्ष्मण और रामको अपने महलोंमें ले गया। . राम लक्ष्मणका स्त्रीरूप; अतिवीर्यका पराभव । · राम आदि वहीं रहते थे। एक दिन राम सहित महीधर राजा अपनी सभामें बैठा हुआ था; उसी समय अतिवीर्य राजाका एक दूत आया और कहने लगा:---- ___ 'नंद्यावर्त' के राजा 'अतिवीर्य । ने-जो वीर्यक सागर है, भरत राजाके साथ विग्रह होनेसे, तुमको अपनी सहायताके लिए बुलाया है । दशरथ के पुत्र राजा भरतकी सेनामें बहुतसे राजा आये हुए हैं। इसलिए महा बलवान अतिवीर्यने तुमको बुला भेजा है।" उससे लक्ष्मणने पूछा:-" नंद्यावर्त पुरके राजा अति-- वीर्यके साथ भरतका विग्रह क्यों हुआ ?" दूतने उत्तर दिया:- "मेरे स्वामी अतिवीर्य भरतसे भक्ति कराना चाहते हैं और भरत इन्कार करते हैं। यही विरोध और विग्रहका कारण है।" यह सुनकर रामने पूछा:-" हे दूत ! भरत क्या अति
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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