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२३० जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग । मालाने लज्जित हो, मुख ढक, सीता और रामके चरणोंमें नमस्कार किया। __ उधर सवेरे ही महीधर राजाकी स्त्री महलमें वनमालाको न देख, करुण-आक्रंदन करने लगी। महीधर उसको धीरज बँधा वनमालाको खोजनेके लिए रवाना हुआ।
सेना सहित, इधर उधर भटकते हुए उसने, वनमालाको उद्यानमें बैठे देखा । उसकी सेना वनमालाके चोरको, मारो, मारो पुकारती हुई शस्त्र उठाकर लक्ष्मणादिको मारने के लिए दौड़ी। ___ उनको इस स्थितिमें आते देख लक्ष्मणको क्रोध आया वे खड़े हो गये । भ्रकुटीकी भाँति उन्होंने धनुष पर चिल्ला चढ़ाकर, शत्रुओंका अहंकार हरनेवाली धनुषकी टंकार की । टंकार शब्दसे कई सुभट, क्षुब्ध हो गये, कई त्रसित होगये और कई तो पृथ्वीपर गिर गये। मात्र महीधर राजा अकेला सामने खड़ा रहा । उसने ध्यानसे लक्ष्मणको, देखा, पहिचाना, और कहा:-" हे सौमित्र ! धनुषपस्से चिल्ला उतार लो । मेरी पुत्रीके पुण्यसे ही आपका यहाँ
आगमन हुआ है।" . तत्काल ही लक्ष्मणने धनुषसे चिल्ला उतार लिया। इससे महीघरका हृदय स्वस्थ बना । फिर उसने समको देख, स्थमेंसे उतर, उनको प्रणाम किया और कहा:
आपके अनुज लक्ष्मणपस ,मेरी, कन्याका पसिलेडीमे